: धीरे धीरे बीकानेर की संस्कृति पाटा गज़ट भी लुप्त होती जा रही है। जहाँ से चेतना का विकास होता था।
के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा 2025-06-16 20:11:12

बीकानेर लोगो की आत्मा निद्रा से कब जागेगी लेखक, विचारक, चिंतक ,संपादक, बीकानेर एक्सप्रेस
—— मनोहर चावला की कलम से
यह सर्वविदित है कि बीकानेर प्रदेश का सबसे पिछड़ा शहर है। उपलब्धियों के नाम पर हम कृषि विश्वविद्यालय , वेटरनरी विश्वविद्यालय , तकनीकी विश्वविद्यालय और महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय का नाम ले सकते है। यही नहीं, यहाँ नामी वकील भी है एक्सपर्ट डाक्टर भी है। नामी साहित्यकार लेखक, कवि , शायर, वरिष्ठ पत्रकारो की यहाँ कोई कमी नहीं। प्रमुख उद्योगपति, दानवीर लोग भी यहाँ है। काफ़ी उदारमन के इण्डस्ट्रिलिस्ट भी है। जो नए आने वाले अधिकारी की हमेशा फूलो का गुलदस्ता भेंट कर अगुवाई करते है। ऐतिहासिक विरासत भी हमे शानदार मिली हुई है। जूनागढ़, लालगढ़, गजनेर झील, कोलायत सरोवर और चूहो वाली माँ करनी माता का मंदिर बीकानेर के गौरव है। बीकानेर ने कई अच्छे लीडर भी दिए है। मुरलीधर व्यास, गोकुल प्रशाद पुरोहित, गोपाल जोशी, नन्दू महाराज, महबूब अली को हम कभी भुला नहीं सकते। पूर्व विधायक रामकिशन दास गुप्ता के संघर्ष को हम हमेशा याद रखते है । पहले बी डी कल्ला और अब जेठानंद व्यास के पास बीकानेर का नेतृत्व रहा है । अब भी यहाँ सत्ता पक्ष के पाँच विधायक , एक मंत्री और एक केंद्रीय मंत्री है। लेकिन इतने पावरफुल लोगो के बावजूद भी यहाँ के लोग निराश है, दुखी है, परेशान है। बस इन सबके मन में एक ही विचार आता है कि अन्य शहरों की तरह उन्हें वो आधारभूत सुविधाएं क्यो नहीं मिलती जो जयपुर, जोधपुर, कोटा, उदयपुर, अजमेर, भरतपुर को मिली हुई है। मसलन, साफ़ सुंदर पक्की सड़के, सीवरेज व्यवस्था, बिजली- पेयजल की समुचित व्यवस्था, सुव्यवस्थित यातायात, सिटी बसे, सुंदर उद्यान और वहाँ का विकास आदि आदि। जबकि बीकानेर की सड़के सालो से नहीं बनी। टूटी - फूटी गड्डों वाली सड़को पर लोग रोज़ाना दुर्घटनाओं का शिकार होते है। सीवरेज व्यवस्था का यहाँ दिवाला निकला हुआ है। सड़को पर गंदा पानी हमेशा बहता रहता है। सड़को पर विचरण करते आवारा पशुओं ने राहगीरो में आंतक फैला रखा है। आवारा और पागल कुत्तो की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है इनके काटने के भय से बड़े बुजर्ग, बच्चे घर से बाहर नहीं निकलते। शहर के बीचो- बीच दिन में ५२ बार बंद होते रेल फटको ने लोगो के जीवन को घुन की तरह खोखला कर रखा है। इनके निदान के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं। मोदी जी के पास भी नहीं। जनप्रतिनिधियों से किसी प्रकार की उम्मीद रखना बेकार है वो तो टाइम- पास करने या फिर कुछ लोग अपनी पीढ़ियो का इंतज़ाम करने के लिए आते है और प्रशासन को यह सब नज़र नहीं आता। क्योंकि उनकी नकेल खींचने वाली जनता उन्हें सोई हुई मिलती है और वे अपना टाइम-पास करना ही बेहतर समझते है। अफ़सोसजनक बात यह है कि यहाँ का नागरिक चिर निद्रा में है या शायद भांग के नशे में है बहुत अच्छे लोग है लोग। मनमोज़ी ज़रूर है लेकिन ख़ामोश है? क्योंकि किसी नागरिक, किसी संगठन ने कोई आवाज़ नहीं उठाई , किसी ने आंदोलन नहीं किया, कोई अनशन पर नहीं बैठा! किसी भी जागरूक नागरिक ने हाईकोर्ट में याचिका दायर नहीं की ,कि सड़के क्यो नहीं बनाई जाती? आवारा पशुओं और पागल कुत्तो को क्यो नहीं पकड़ा जाता? ट्रेफिक व्यवस्था को सुचारू रूप से क्यो नहीं चलाया जाता? क्या बीकानेर में कोई मई का लाल नहीं है जो बीकानेर के साथ होने वाले अन्याय के विरुद्ध हाईकोर्ट में जन हित याचिका लगाएं। वकील समुदाय में कोई ऐसा सजग वकील नहीं जो यह कार्य आसानी से कर सके। अरे भाई वकील को तो पैसा भी खर्च नहीं करना पड़ता। लेकिन आत्मा जागरूक होनी चाहिए न। क्या हम सबकी आत्मा मर चुकी है या घोड़ निद्रा में है। न हम हाई-कोर्ट जा सकते है न हम कोई आंदोलन चला सकते है न अनशन या फिर बीकानेर बंद का आव्हान कर सकते है। हमे अपने हितों की बजाय नगर हितों पर ध्यान देना चाहिए। कभी भी अपनी आत्मा को जगाओ मेरे भाई ?कुछ तो अपने शहर के विकास के लिए मंथन करो। वरना आने वाली पीढ़ी हमे कभी माफ नहीं करेगी ? हम तो लिखते लिखते थक गए उमर के आख़िरी दिनों में यही इच्छा रही है कि बीकानेर स्वर्ग जैसा सुंदर हो, शायद यह इच्छा पूरी न हो पाए!
: धीरे धीरे बीकानेर की संस्कृति पाटा गज़ट भी लुप्त होती जा रही है। जहाँ से चेतना का विकास होता था।