उत्तर 24 परगना: फलहारिणी अमावस्या पर भक्ति का अद्भुत सैलाब, बारिश भी न रोक पाई श्रद्धा
के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा 2025-05-27 07:28:57

उत्तर 24 परगना: फलहारिणी अमावस्या पर भक्ति का अद्भुत सैलाब, बारिश भी न रोक पाई श्रद्धा
कल्पना कीजिए एक ऐसे दृश्य की, जहाँ आसमान से मूसलाधार बारिश हो रही है, फिर भी हजारों लोग अटल खड़े हैं, उनकी आँखें एक ही पवित्र उद्देश्य पर टिकी हैं। ठीक ऐसा ही कुछ उत्तर 24 परगना, पश्चिम बंगाल में फलहारिणी अमावस्या के पावन अवसर पर हुआ। प्रकृति की चुनौती के बावजूद, भक्तों का एक विशाल जनसैलाब प्रसिद्ध दक्षिणेश्वर काली मंदिर की ओर उमड़ पड़ा। यह दृश्य केवल एक धार्मिक अनुष्ठान का नहीं, बल्कि मानव की अदम्य आस्था और समर्पण का एक जीवंत प्रमाण था, जहाँ बारिश की फुहारें भी उनके संकल्प को डिगा न सकीं।
फलहारिणी अमावस्या का महत्व: जब मां काली हरती हैं कर्मफल
फलहारिणी अमावस्या हिंदू धर्म में, विशेषकर बंगाल में, एक अत्यंत महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है। ज्येष्ठ मास की अमावस्या को पड़ने वाली इस पूजा का गहरा आध्यात्मिक महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन मां काली अपने भक्तों के कर्मफल को हर लेती हैं और उन्हें मोक्ष प्रदान करती हैं। यह वह दिन भी है जब श्री रामकृष्ण परमहंस ने जगत कल्याण के लिए अपनी पत्नी श्री मां शारदा देवी की पूजा की थी, उन्हें षोडशी के रूप में पूजकर। इसलिए, यह दिन रामकृष्ण मठों और आश्रमों में 'षोडशी' पूजा के नाम से भी जाना जाता है। भक्त इस दिन मां काली को नाना प्रकार के मौसमी फल अर्पित करते हैं, जिसमें आम, जामुन, लीची और कटहल प्रमुख होते हैं। यह फल केवल नैवेद्य नहीं होते, बल्कि भक्त अपने समस्त कर्मफलों को भी मां के चरणों में अर्पित करते हैं, उनसे मुक्ति और आशीर्वाद की कामना करते हैं।
दक्षिणेश्वर काली मंदिर: एक आध्यात्मिक गढ़
कोलकाता के पास हुगली नदी के पूर्वी तट पर स्थित दक्षिणेश्वर काली मंदिर, मां भवतारिणी (मां काली का एक रूप) को समर्पित एक प्रतिष्ठित तीर्थस्थल है। इसका निर्माण 1855 में रानी रासमणि द्वारा किया गया था और यह संत रामकृष्ण परमहंस से जुड़ाव के लिए विश्व प्रसिद्ध है, जिन्होंने यहां तीस वर्षों तक मुख्य पुजारी के रूप में सेवा की। मंदिर अपनी नव-रत्न (नौ शिखर) वास्तुकला शैली के लिए जाना जाता है और सौ फीट से अधिक की ऊंचाई पर खड़ा है। फलहारिणी अमावस्या जैसे विशेष अवसरों पर, मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है, जो मां काली के आशीर्वाद और शांति की तलाश में आते हैं। मंदिर परिसर में भगवान शिव के बारह मंदिर, एक विष्णु मंदिर और एक नाटमंदिर भी शामिल है, जो इसे एक पूर्ण आध्यात्मिक केंद्र बनाता है।
बारिश भी न रोक पाई श्रद्धा की धारा
फलहारिणी अमावस्या की सुबह से ही उत्तर 24 परगना में बारिश शुरू हो गई थी, जिससे मौसम काफी ठंडा और नम हो गया था। सड़कें भीग चुकी थीं, लेकिन यह भक्तों के उत्साह को कम नहीं कर सका। श्रद्धालु छाते लेकर, या बस बारिश में भीगते हुए, अपनी श्रद्धा के साथ दक्षिणेश्वर काली मंदिर की ओर बढ़ते रहे। मंदिर के द्वार खुलते ही, भक्तों का सैलाब अंदर उमड़ पड़ा, सभी मां काली की एक झलक पाने और उन्हें फल अर्पित करने को आतुर थे। यह दृश्य भारतीय संस्कृति में निहित अटूट विश्वास और भक्ति की गहराई को दर्शाता है, जहां मौसम या अन्य भौतिक बाधाएं आध्यात्मिक यात्रा में बाधा नहीं बन सकतीं। मंदिर परिसर के भीतर और बाहर, हर जगह "जय मां काली" के जयकारे गूंज रहे थे, जो वातावरण को भक्तिमय बना रहे थे।
आस्था की विजय
उत्तर 24 परगना में फलहारिणी अमावस्या पर दक्षिणेश्वर काली मंदिर में भक्तों का यह जमावड़ा केवल एक घटना नहीं, बल्कि आस्था की एक अद्भुत कहानी है। यह दिखाता है कि कैसे धार्मिक विश्वास और परंपराएं लोगों को एक साथ लाती हैं, भले ही परिस्थितियां कितनी भी चुनौतीपूर्ण क्यों न हों। बारिश में भीगते हुए भी भक्तों का यह समर्पण, न केवल मां काली के प्रति उनकी गहरी आस्था को दर्शाता है, बल्कि एक मजबूत आध्यात्मिक जुड़ाव की भी पुष्टि करता है जो उन्हें हर बाधा से ऊपर उठने की शक्ति प्रदान करता है।