अमानवीयता की पराकाष्ठा: मासूम बच्चों की मौत, पोस्टमार्टम के लिए रिश्वत मांगने का आरोप


के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा  2025-05-26 21:07:11



 

केरल में एक माँ द्वारा अपनी बेटी को नदी में फेंकने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि छत्तीसगढ़ के बतौली से एक और हृदयविदारक और इंसानियत को शर्मसार कर देने वाला मामला सामने आया है। ग्राम सिलसिला में डबरी में डूबने से दो मासूम बच्चों की मौत हो गई, लेकिन इस त्रासदी से भी अधिक चौंकाने वाला और निंदनीय यह रहा कि उनके शवों का पोस्टमार्टम करने के लिए डॉक्टरों ने परिजनों से कथित तौर पर 20,000 रुपये की मांग की। इस अमानवीय कृत्य के बाद स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया, जिसके परिणामस्वरूप त्वरित और सख्त कार्रवाई हुई है।

दर्दनाक हादसा और अस्पताल की असंवेदनशीलता:

लुंड्रा विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत रघुनाथपुर के ग्राम सिलसिला, घोड़ा झरिया निवासी 5 वर्षीय जुगनू आ. शिवा गिरी और 4 वर्षीय सूरज गिरी आ. विनोद गिरी चचेरे भाई थे। 18 मई की दोपहर, ये दोनों बच्चे अपने परिजनों और गांव के लोगों के साथ गांव में मौजूद एक डबरी में नहाने गए थे। नहाते समय वे अचानक गहरे पानी में उतर गए और किसी की उन पर नजर नहीं पड़ी। जब परिजनों ने बच्चों को खोजना शुरू किया, तो उन्हें डबरी के बाहर बच्चों के कपड़े मिले, जिससे अनहोनी की आशंका हुई। ग्रामीणों ने तुरंत डबरी में खोजबीन शुरू की और दोनों बच्चों को बाहर निकाला। परिजन तुरंत बच्चों को रघुनाथपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए, जहाँ डॉक्टरों ने जांच के बाद उन्हें मृत घोषित कर दिया। बच्चों की मौत के बाद परिजन सदमे में थे, लेकिन इस बीच अस्पताल प्रबंधन की अमानवीयता सामने आई, जिसने उनके दुख को और बढ़ा दिया।

पोस्टमार्टम के लिए पैसों की मांग और शव वाहन का अभाव:

परिजनों का आरोप है कि रघुनाथपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सकों ने बच्चों का पोस्टमार्टम करने के नाम पर 10-10 हजार रुपये, यानी कुल 20,000 रुपये की मांग की। यह आरोप तब और भी गंभीर हो जाता है, जब एक गरीब और शोक संतप्त परिवार से ऐसी मांग की जाती है। इतना ही नहीं, पोस्टमार्टम के बाद बच्चों के शवों को घर ले जाने के लिए वाहन उपलब्ध न होने पर भी गंभीर सवाल उठे। परिजनों को मजबूरन बच्चों के शवों को बाइक पर ले जाना पड़ा, जो एक बेहद शर्मनाक और अमानवीय स्थिति थी।

स्वास्थ्य विभाग की त्वरित कार्रवाई:

इस अमानवीय घटना की जानकारी जब स्वास्थ्य सचिव तक पहुंची, तो उन्होंने तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिए। स्वास्थ्य सचिव के निर्देश के बाद, कलेक्टर ने तुरंत एक्शन लिया। धौरपुर के बीएमओ (ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर) डॉ. राघवेंद्र चौबे को निलंबित कर दिया गया, और रघुनाथपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ मेडिकल ऑफिसर अमन जायसवाल को भी उनके पद से हटा दिया गया। यह कार्रवाई यह दर्शाती है कि राज्य सरकार ऐसी असंवेदनशील और भ्रष्ट गतिविधियों के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपना रही है।

समाज में आक्रोश और व्यवस्था पर सवाल:

इस घटना ने पूरे क्षेत्र में गहरा आक्रोश पैदा कर दिया है। लोग स्वास्थ्यकर्मियों की इस असंवेदनशीलता की कड़ी निंदा कर रहे हैं। यह मामला न केवल एक अस्पताल विशेष की लापरवाही और भ्रष्टाचार को उजागर करता है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और संवेदनशीलता पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। पोस्टमार्टम जैसी बुनियादी स्वास्थ्य सेवा के लिए पैसे की मांग करना और शव वाहन उपलब्ध न कराना, यह दिखाता है कि व्यवस्था में कहां-कहां खामियां हैं।

यह दुखद घटना एक परिवार के लिए अकल्पनीय त्रासदी है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग द्वारा की गई त्वरित कार्रवाई एक सकारात्मक संकेत है। यह उम्मीद की जाती है कि इस तरह की सख्त कार्रवाई से भविष्य में ऐसी अमानवीय घटनाएं रुकेंगी और स्वास्थ्य सेवाएं वास्तव में जन-कल्याणकारी बन पाएंगी।


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