हाईकोर्ट तक पहुंचा फर्जीवाड़ा: शिक्षा विभाग में नकली आदेशों का खुलासा
के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा 2025-05-26 07:13:42

बिलासपुर के जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में उस समय हड़कंप मच गया, जब दो शिक्षक अपने तबादले के आदेश के साथ पदस्थापना के लिए पहुंचे और जांच में वह आदेश पूरी तरह से फर्जी निकला। यह घटना केवल दो शिक्षकों के भविष्य से जुड़ा मामला नहीं, बल्कि एक बड़े जालसाजी रैकेट का खुलासा है, जिसने शिक्षा विभाग की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह मामला अब हाईकोर्ट तक पहुंच गया है, जहां शिक्षकों को अपने फर्जी आदेशों की सच्चाई का सामना करना पड़ा है।
फर्जी आदेशों का खुलासा:
मामला तब सामने आया जब जांजगीर-चांपा में पदस्थ ज्योति दुबे और सूरजपुर में पदस्थ श्रुति साहू नामक दो शिक्षिकाएं अपने तबादले के आदेश के साथ बिलासपुर जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय पहुंचीं। उनके पास जो ट्रांसफर आदेश थे, वे हूबहू सरकारी आदेशों जैसे प्रतीत हो रहे थे, जिसमें नियुक्ति अगले आदेश तक प्रभावी रहने और स्थानांतरण का आधार प्रशासनिक कारण बताया गया था। लेकिन, जब इन आदेशों की प्रामाणिकता की जांच की गई, तो वे फर्जी पाए गए। इस धोखाधड़ी का पता चलते ही जिला शिक्षा अधिकारी ने अप्रैल माह में दोनों के तबादला आदेश को तत्काल निरस्त कर दिया और उन्हें अपने पुराने पदस्थापन स्थल पर रिपोर्ट करने का आदेश जारी कर दिया। साथ ही, उन्हें कार्यमुक्त करने का आदेश भी जारी किया गया।
हाईकोर्ट में न्याय की गुहार और सच्चाई का सामना:
डीईओ की इस कार्रवाई के खिलाफ दोनों शिक्षिकाओं ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की और डीईओ के आदेश को रद्द करने की मांग की। हालांकि, सुनवाई के दौरान जब उन्हें बताया गया कि उनका आदेश वास्तव में फर्जी है, तो उन्होंने अपने पूर्व विद्यालय में वापस लौटने के लिए 10 दिन का समय मांगा। यह स्थिति उनके लिए बेहद शर्मनाक और निराशाजनक रही होगी, क्योंकि वे शायद खुद भी इस जालसाजी का शिकार हुई थीं।
बड़े पैमाने पर जालसाजी का पर्दाफाश:
जांच में यह भी सामने आया है कि स्कूल शिक्षा विभाग के अवर सचिव आरपी वर्मा के फर्जी हस्ताक्षर से केवल इन दो शिक्षकों के ही नहीं, बल्कि अलग-अलग जिलों में कम से कम आधा दर्जन शिक्षकों के तबादले दर्शाए गए हैं। इस बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा होने के बाद अवर सचिव आरपी वर्मा ने स्वयं रायपुर के राखी थाने में लिखित शिकायत दर्ज कराई है, जिसके आधार पर अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई है। यह दर्शाता है कि यह कोई व्यक्तिगत मामला नहीं, बल्कि एक सुनियोजित गिरोह का काम है जो शिक्षा विभाग में इस तरह की जालसाजी को अंजाम दे रहा है।
पुलिस जांच और भविष्य की दिशा:
अब पुलिस इस मामले की गहन जांच कर रही है ताकि इस फर्जीवाड़े के पीछे के मास्टरमाइंड और इसमें शामिल अन्य लोगों को पकड़ा जा सके। यह घटना शिक्षा विभाग में पारदर्शिता और सुरक्षा उपायों को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर देती है। शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों को भी भविष्य में ऐसे किसी भी संदिग्ध आदेश की प्रामाणिकता की स्वयं जांच करने के लिए सतर्क रहने की आवश्यकता है। यह मामला एक गंभीर चेतावनी है कि धोखेबाज किसी भी व्यवस्था में सेंध लगाने की फिराक में रहते हैं, और उनसे निपटने के लिए लगातार सतर्कता और कठोर कार्रवाई आवश्यक है।