कुल मिलाकर ग़रीब की मार है मध्यमवर्ग हमेशा पिसता रहा है पिसता ही रहेगा? इस वर्ग को जितना निचोड़ सको, निचोड़ो। यही सरकारों की सफलता का राज है।


के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा  2025-04-14 18:41:55



सरकार की सफलता—- ग़रीब को जितना निचोड़ सको, निचोड़ो।   

—- मनोहर चावला पूर्व पी आर ओ लेखक, विचारक, चिंतक, संपादक बीकानेर एक्सप्रेस

रसोई गेंस सिलेण्डर ५० रू. आज से महंगा हो गया। दवाइयों की क़ीमते कई गुना बढ़ गई। खाद्य पदार्थ मसलन तेल, घी, मिर्च, मसाले, दालो के भाव आसमान को छूने लग गए। और हमारी सरकार है कि उपलब्धियों का ढिंढोरा पीट रही है। जबकि आम आदमी महंगाई की मार से पीसा जा रहा है, मरा जा रहा है। नेताओं को चिन्ता नहीं! क्योंकि उन्होंने अपने वेतन में २४ प्रतिशत इजाफा कर लिया है। उनकी देखादेखी विधायकों ने भी अपने वेतन बढ़ा लिए है। आश्चर्य होता है कि वेतन बढ़ाने की मांग पर ये सब लोग एक कैसे हो जाते है ? जबकि हर बिल या कानून पास करने के लिए इनमे तू तू— मैं मैं होती है। वैसे भी किसी भी सरकार का मूल्यों पर कोई नियन्त्रण नहीं रहा है। यही नहीं कोचिंग संस्थानो पर भी नहीं— निजी स्कूलों पर भी नहीं। सरकार को मालूम है कि कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चे स्कूलों के होते है स्कूलों में इनकी हाजरी लग रही होती है और उसी समय ये बच्चे कोचिंग भी ले रहे होते है। दोनों तरफ़ इनकी उपस्थिति दर्ज होती है। स्कूलों और कोचिंग संस्थानों की मिलीभगत से यह धंधा खुले आम चल रहा है और कोचिंग संस्थान डाक्टर, इंजीनियर, लेक्चरार बनाने का आश्वासन देकर नेताओ के रसूख से मनमर्जी की फीस लाखो में वसूल कर मुनाफाखोरी कर रहे होते है इन पर सरकार का कोई नियन्त्रण नहीं। क्योंकि गंगा तो ऊपर से बह रही है। आम आदमी अपने बच्चों के भविष्य के लिए इनके चक्रवीह्व में फँस कर क़र्ज़दार हो रहा है। इनकी बला से। इधर निज़ी स्कूलों की लूट किसी से छिपी नहीं है कभी किताबों के नाम पर, कभी ड्रेस के लिए, कभी लाइब्रेरी, कभी खेल खिलाने के लिए, कभी पिकनिक, कभी भ्रमण के लिए मनमर्ज़ी की ट्यूशन फीस वसूल कर रहे है इन पर भी सरकार का कोई नियन्त्रण नहीं। वो दिन दूर नहीं जब निजी स्कूल वाले अपने स्कूल में किताबों की दुकाने, जुतो की, ड्रेस के लिए कपड़ो की, जुतो पर पालिश के लिए मोची, बालों की कटिंग के लिए नाई की दुकाने खोल ले।

सरकार को कोई लेना देना नहीं है, न ही डाक्टरों की प्राइवेट प्रेक्टिक्स पर सरकार को कोई एतराज है। रिटायर्ड डॉक्टर ५०० रू से ५००० रू तक फीस मरीजों से वसूल कर रहे है न कोई रशीद- न आयकर- न कोई हिसाब बेशुमार दो नम्बर की दौलत ये डॉक्टर लोग खुले-आम कमा रहे है फूटे मरीजों के भाग्य, सरकार ने इस और अपनी आँखे बंद कर रखी है। दवाइयो और जांचो में इनका कमीशन किसी से छिपा नहीं है। लेकिन सरकार ने इस और देखना छोड़ दिया है।यही हाल सरकारी डाक्टरों का है अस्पताल नहीं जाना, सुबह से देर रात्रि तक घर पर ही मरीज़ देखना- घर में खोली दवाई की दुकान से दवा लेने के लिए मरीज़ को प्रेरित करना- अपनी ही लैब में ही जाँच करवाना— अब नियति बन चुकी है इनका नेटवर्क इतना मज़बूत है कि कोई उसे तोड़ नहीं सकता। क्योंकि भरी हुई अटेचिया इनकी सरक्षक है। नेताओ का इन पर वरद हस्त है। ऐसे बहुत से संस्थान है जहाँ भ्रष्टचार शिष्टाचार में बदला हुआ है। आर टी ओ ऑफिस- रेवन्यू विभाग- अन्य और भी बहुत से विभाग- नगर निगम, यू आई टी जहाँ के हालात से पूरी तरह सरकार वाक़िफ़ है। लेकिन आँखे बंद किए हुए है। क्योंकि बड़े बड़े संस्थान उनके दलों को बेशुमार चंदा देते है। बड़ी बड़ी दवाइयो की कंपनिया— फ़ूड इलकोट्रिक ट्रस्ट- सोलर एनर्जी— रुंगटा सेंस— आईटीसी— और भी अनेक कंपनियां और संस्थान सरकार चलाने के लिए भारी- भरकम चंदा देते है। फिर वो अपने प्रोडक्ट की क़ीमते बढ़ाकर ग्राहको से वसूल करते है। जैसे जैसे चन्दा बढ़ेगा, वैसे वैसे क़ीमते बढ़ेगी। इसलिए जनता कों सरकार से कीमते कम करवाना या महंगाई कम करने की सोचना बेमानी होगी। क्योंकि इन कॉर्पोरेट के चंदे बिना सरकारे चल नहीं सकती। भोली- भाली जनता इनके बहकावे में आकर कुछ अब नया होगाी

आशा में आकर इन्हें वोट देकर जिता देती है लेकिन कुछ समय बाद ही रंग बदलते ही गिरगिट की इन्हें याद आ जाती है। लेकिन अब पछताए क्या होत? वैसे भी इधर कुंवा और उधर खाई होती है गिरना तो है ही किस में गिरे? इसका निर्णय ही तो करना होता है। कुल मिलाकर ग़रीब की मार है मध्यमवर्ग हमेशा पिसता रहा है पिसता ही रहेगा? इस वर्ग को जितना निचोड़ सको, निचोड़ो। यही सरकारों की सफलता का राज है।

मैं जो कुछ लिखूंगा सच लिखूंगा सच के सिवा कुछ लिखूंगा आपको बुरा लगेगा मगर क्या करूं सच-सच है मनोहर चावला बीकानेर फ्रंटियर एक्सप्रेस बीकानेर


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