जो पहले के लोग आज ज़िंदा है जैसे मैं और मेरे जैसे कई लोग, उनका मानना है कि बीकानेर अब पहले जैसा नहीं
के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा 2025-04-08 18:38:33

बीकानेर अब पहले जैसा नहीं रहा !
—— मनोहर चावला
जो पहले के लोग आज ज़िंदा है जैसे मैं और मेरे जैसे कई लोग, उनका मानना है कि बीकानेर अब पहले जैसा नहीं रहा। इसका स्वरूप एकदम बदल गया है कहा वो मौज- मस्ती, कहाँ पाटा गजट - कहाँ वो रसगुल्ले- कहाँ वो कचौड़ी समोसा- कहाँ किराडू जी की चाय - पान, कहाँ जयहिन्द होटल की चाय की चुस्कियां और कविता पाठ— कहाँ चार्ली लस्सी- कहाँ मिलन होटल की जुगलबंदी- चाय- पट्टी की चाय पर गप्प शप - प्रेमजी पान वाले का मीठा पान- क्षीरसागर की मिठाई— रामा की रबड़ी— मोहता चौक का कलाकन्द - हल्दीराम की भुजिया— ये सब बदलते वक्त के साथ अपना स्वाद और अपनी गरिमा खो बैठे है । सिनेमा हॉल अब मॉल बन गए है । एक सिने- मज़िक सिनेमा हॉल है जो मनमर्ज़ी की टिकट दर से दर्शकों की जेब खाली कर रहा है। प्रशासन की आँखो के सामने गंगाथियेटर खंडहर हो गया है । विश्व ज्योति मॉल में परिवर्तित हो गया। मिनर्वा— प्रकाशचित्र भी खंडहर में तब्दील हो रहे है। यहाँ की चौड़ी सड़के सिकुड़ कर छोटी हो गई है । रतनबिहारी पार्क उजड़ गया। गाड़े- खोमचे वालो का बाज़ार बन गया। पब्लिक पार्क में धर्मशालाए- दुकाने- होटल खुल गई। पार्क के बीचोंबीच भारी वाहन और टेम्पो- थ्री व्हीलर वातावरण को प्रदूषित करने लगे है । जिस पार्क में फूलों के प्रदर्शनीया लगती थी रंगीन फ़व्वारे चलते थे वे सब नहीं रहे ,किसी होटलवाले ने क़ब्ज़ा कर लिया। हमारा अजायबघर-चिड़ियाघर— हमारे शेर, चीते, भालू यहाँ से चले गए, कहाँ गए पता नहीं ? ऐतिहासिक इमारते और हमारी विरासत के अलावा बीकानेर में कुछ नया नहीं। बीकानेर आज भी जूनागढ़ फोर्ट- गजनेर झील- लालगढ़ प्लेस- लक्ष्मी नाथ जी का मंदिर- नगानी जी का मंदिर- देशनोक में चूहो वाले मन्दिर कोलायत कपिल मुनि के मंदिर से विख्यात है। बाक़ी अब इस शहर में क्या बचा है ? टूटी- फूटी सड़के और उन पर गहरे गड्डे और फिर उन पर बहता गन्दा पानी— जगह जगह कचड़े के ढेर- सड़को पर आवारा घूमते गाय- गोधे, पागल कुत्ते अब यहाँ की शान है। थ्री- व्हीलर वालो की भारी भीड़ ने सड़के छोटी कर दी है अतिक्रमण यहाँ की अपनी विशेषता बन गई है। सड़को पर पाटे लगाकर दुकाने लगाना यहाँ की विशेषता है। कुछ बिल्डरों ने निगम और यूआईटी की साँठ- गाँठ से नियोजित बीकानेर के नक़्शे को ही बदल दिया है । शहर की पहचान कोटगेट के पीछे बनी विशाल इमारते कोटगेट की चमक को धो रही है। सूरज की रोशनी- चंद्रमा की चाँदनी पर भी इन विशाल इमारतों ने क़ब्ज़ा कर लिया है। बड़ी इमारतो के आस- पास रहने वाले लोग ठण्डी हवाये और सूरज की रोशनी को तरसते है। रेल फाटको की समस्या राजनीति का शिकार हो गई है रेल फाटको की समस्या निदान के लिये जनता को हर कोई यहाँ का नेता चुनाव के समय इन्हें लॉलीपॉप देता है। रानी बाज़ार का अंडरब्रिज इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है बारिश के समय इसकी दुर्दशा देखी जा सकती है। अब कोट- गेट और सांखला फाटक पर अण्डरब्रिज बनाकर बीकानेर के स्वरूप को बिगाड़ने की कोशिश हो रही है बाईपास की अब बात नहीं होती। जिसके लिए साल भर तक एडवोकेट रामकिशन दास गुप्ता ने जनआंदोलन चलाया था। अब यहाँ कोई कुछ नहीं बोलता। लगता है यहाँ सबने मौन धारण कर रखा है। जबकि कोटा- अजमेर- जोधपुर- उदयपुर विकास में सर्वोत्तम शहर बन गए है। नेताओ की उपेक्षा और नगरवासियों की उदासीनता इसका प्रमुख कारण रहा है। खैर बीकानेर शहर अब वो पहले जैसा शहर नहीं रहा जिस पर शायर अज़ीज़ आज़ाद ने लिखा था कि कोई मेरे शहर में दो दिन तो ठहर कर देखे सारा ज़हर उतर जाएगा। मतलब यहाँ की मौज- मस्ती में सारा तनाव ख़त्म हो जाएगा। लेकिन अब बदलते वक्त के साथ अपने मित्रो- परिजनों को यह लिखना पड़ता है कि भूल कर भी मत आना बीकानेर— बीकानेर अब पहले जैसा नहीं रहा! आओगे तो पछताओगे।
लेखक, विचारक, चिंतक, संपादक, बीकानेर एक्सप्रेस मनोहर चावला की कलम से